لم اعرفها….
وتفحص….
عينيها….
وشفتيها…
وخدودها….
قلبها….
واتيقنت….
من لسانها….
شديده….
حريصه….
ع ماتقول….
لكنها….
لاتدرك….
مع من….
تقول….
كتب….
بكلمي…
في كتابها….
وتصفحت….
تقراء….
اشعاري….
ولم تدرك….
ان حبي لها….
اعماني….
عن ايشئ….
من عيوبها….
جميلتين….
بستان….
من عبير….
الازهار….
واغصان….
راوية….
الادمان….
وعين….
هماء…
بحر…
بامواجه….
من الاحزان….
انتي حبيبتي….
تيارات كثير…..
لايخوفني…..
الا الاعراض….
لها حدود….
في مسائي….
هي جوهرتي….
والمرجان….
وقمري….
اوسامره….
مدى الايام….
تعرف اني….
اعشقها….
واحبها بغرام….
واسقيها….
من دموع….
الاحزان….
بعيد ….
عنها….
الدنيا….
لولاه….
القمر ظله….
لما عشت….
معاها…..
احلم بها…..
رغم اني…..
تحت الاختبار….
اخطاء…..
فيه وهذا حرص….
اسمعني….
بصوتي….
تجاوزت….
الالآم…..
حبيبتي انتي….
يازهرة الاغصان….
نجرات…..
بنار وغدرحولك…
انتي مالكت….
قلبي وعقلي….
وفؤادي المنهار…..
قد اغلقتي….
جميع الابواب….
والطاقه…..
منها صوت….
العصافير…..
تزقزق اليها نسير….
آه ياعين….
من هواء….
الابحار…..
اشقتنهي…
دمعة….
تسقط…
ع شفتيكي…
لترويها….
من جفاف الزمان….
لاتقتليني بكلام…..
بل اقتليني….
بحربه مسمومه….
ورماح وتليها سهام….
القلب اقرب لك….
والجسد خذيه اشلاء….
تقربي منه….
وغسليه بدمعة الافراح….
وكفنيني بجعدك الغزير….
ودفنيني في صدرك….
ببركانه النار….
سااتلاشاء…..
في جسدك….
واكون اول العاشقين…..
اياتاج الزمرد….
كيف من راسها…..
تنحال….
نظرت الى….
عينيكي…
تنظر اليه….
وتتوعدني….
ان كان…
هناك….
استقرار…
سيكون…
حديثه….
كيف….
لايمكن….
الايام…
الماضيه…
هي سرب…
من الاحلام….
الصحيه…..
لم اراء….
وردة…
اهواها…
قلبي…
واهواك…
عقلي…
عندما…
ياتي…
الرياح…
تلاطفك…
وتراقص…
اوراق…
ورودك….
اشم طيب….
عبيروردكم….
يجري الى روحي….
ووجدني….
يوقظ….
حنيني….
اليكم….
فنظروا….
اليه ياناظري…..
لان الصبر….
قدصبرنا ارواحنا…
في قلوبنا…
احزننا…..
حبيبتي….
لاتنهريني….
دعيني….
اكون بين يديك….
واسعد…
ان كنت….
نلت رضاك….
آه ياردينات….
الورودبطيب…
بطيب ريحان….
ويابهاء العمر….
دعي عينيه….
ترتوي….
من قطرات….
النداء وعطور الازهار….
حبيبتي قلمي انتي….
فلاتنسيه……
فهو ذاكرتي….
من روحك….
استلهمه……
فاعيديني….
بكاس العشاق….
اشربه قبل الصباح……
احمدعمر اللحوري.
المكلا حضرموت
