احمدعمر اللحوري.
المكلا حضرموت.
قلم يرسم….
حب السلام….
وورده في ورق….
له الحياه….
واي العذاب….
فقدنا…..
الاعتبار….
لعين….
دموعها….
بحر وانهار….
لكلمة من لسانها….
احسان للقلب….
لها يذاب…..
لوردة….
من غصن….
في ارض….
نبتت ….
منها اشجار….
وروح….
جميله….
بالاخلاق….
صغيرتي….
في عيني….
وقريحتي…..
تسعى….
لتسعد….
هذا الجمال…
رحل العمر….
ولم ترحلي….
من القلب…
يازهرتي….
جميعنا….
نحب….
الحياه…..
والشوق…..
عنوان….
الاشتياق….
ماذا يقول…..
العيون حين….
اغازلها….
وجمالها….
سحرني….
ورقة الشفايف….
تناديني….
وتوقظني….
من المنام….
وحلم خيالك….
لايفارقني…..
قصيت….
ولم اعلم….
اين انا ذاهب…..
والشبح ظلالك….
يلاحقني…..
ياعين….
ارحميني….
من هلاك….
العمر…..
والدهر….
مشتاق…
لعذاب….
فؤادي….
رمتني….
وتعالت….
اجذبتني….
لحالي….
بين نار….
تاكل جسدي…..
آه منك ايها….
البدرو الجميل…
جمال سواد….
شعرك يسوقني…..
انت سيد…..
على قلبي….
انهكته من الحب بعدك…..
صغت كلمتي…..
والصمت يكتنفني…..
والليل ثقيل…..
على كاهلا علي فؤادي….
ماذا حنيت انا…..
هكذا تعذبني……
من يساور….
حزني في وحدتي…..
غير حلمي والاحزان….
تعذبني………
طمت عليه….
وسكنت وغادرتني….
ولاادري متي نهايتي….
جميلة من عيناها تعشقها…….
رسمت بمرسمي….
تلك العيون……
ترف عليها….
الرموش لحسنها……
كم اسهر….
امام صورتها…..
ابحث عن……
ذاتي في حسنها…..
لامتني….
نفسي….
لعشقي…..
لها……
شربت من….
احلها كاس….
الهجر….
لعشقي لها….
ورسلت اليها…..
وردة اتمنا…..
تفرحها…..
في ظل….
الصمت….
ويكتنفنا….
الحنين…..
اليها….
ولحظات….
النظر….
لعيناها….
الباسمات….
وهمساتها….
من جفون….
الرموش…..
تبعث…..
رسالاتها……
الى عقلي…..
اليها مذاب….
لاتعلقني…..
بركامات السحاب……
المطر ينزل……
منه بعد….
الاعتصار…..
الاياريح….
بطيب….
من بساتين…..
الورود……
وفل وكادي…..
وعبير الياسمين….
رحيلا يازمن……
لتغادر……
الشمس…..
قبل المغيب…..
لانساء ضهاء النهار…..
واسكن في سكون الليل…..
ليشاركني القمر……
واهدى براحة البال…….
احمدعمر اللحوري.
المكلا حضرموت.
